बोटाद में किसान महापंचायत के बाद बवाल — पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल, MLA बोले “न्याय मिलेगा”
बोटाद, गुजरात | 11–14 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट
गुजरात के बोटाद जिले के (Hadadar) गांव में रविवार को आम आदमी पार्टी (AAP) द्वारा आयोजित किसान महापंचायत के दौरान हुई हिंसा ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया।
सभा में किसानों
और पुलिस के बीच टकराव हुआ, जिसमें कई किसान और पाँच पुलिसकर्मी घायल हुए, जबकि 85 लोगों पर केस दर्ज कर 65 को गिरफ्तार किया गया।
🔹 किसानों की आवाज़ क्यों उठी?
किसानों ने यह
महापंचायत इसलिए रखी थी क्योंकि बोटाद APMC (Agricultural Produce Market Committee) में व्यापारी किसानों को उनकी फसल के पूरे दाम नहीं दे रहे थे।
कपास और मूंगफली
जैसे फसलों के भाव बाजार दर से बहुत कम दिए जा रहे थे।
AAP के युवा कार्यकर्ता राजू कारपड़ा ने सभा में किसानों से कहा था,
“आप सब एकजुट रहिए और शांतिपूर्वक अपने
अधिकार की लड़ाई लड़िए। जब तक किसान संगठित नहीं होंगे, उन्हें न्याय नहीं मिलेगा।”
लेकिन इसी बीच
पुलिस वहाँ पहुँच गई और अनुमति न होने का हवाला देकर सभा को रोकने की कोशिश की।
🔹 कैसे भड़की हिंसा?
प्रत्यक्षदर्शियों
के अनुसार, पुलिस के पहुँचने के बाद माहौल तनावपूर्ण
हो गया।
कुछ अज्ञात असामाजिक तत्वों ने पुलिस वाहनों पर पत्थर और रेत से भरी बोतलें फेंकीं, जिससे स्थिति बिगड़ गई।
पुलिस ने जवाबी
कार्रवाई में आँसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज किया।
DSP धर्मेंद्र शर्मा के अनुसार,
“जैसे ही पुलिस मौके पर पहुँची, भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया, वाहन पलट दिए और सरकारी संपत्ति को
नुकसान पहुँचाया। स्थिति संभालने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।”
पुलिस ने हत्या के प्रयास, दंगा, सरकारी कार्य में बाधा, आपराधिक षड्यंत्र और उकसावे वाले भाषण जैसी धाराएँ लगाई हैं।
साथ ही 50 से अधिक वाहन जब्त किए गए हैं।
🔹 ग्रामीणों और किसानों का आरोप
ग्रामीणों का कहना
है कि पुलिस की कार्रवाई बिना वजह और
अत्यधिक बल प्रयोग वाली थी।
उनके अनुसार, पुलिस ने घरों में घुसकर निर्दोष लोगों
को मारा-पीटा, महिलाओं और बुजुर्गों तक को नहीं छोड़ा।
🔹 MLA उमेश माकवाणा का बयान
घटना के बाद बोटाद के पूर्व विधायक उमेश माकवाणा स्वयं हद्दद गांव पहुँचे और ग्रामीणों से
मुलाकात की।
उन्होंने सभी
घायलों का हालचाल लिया और कहा कि पुलिस की बर्बर कार्रवाई की जांच कराई जाएगी।
“पुलिस ने जिन निर्दोष ग्रामीणों और
किसानों पर बिना वजह लाठीचार्ज किया है, उनके पक्ष में कानूनी कार्रवाई की जाएगी,”
— उमेश माकवाणा, पूर्व विधायक, बोटाद।
माकवाणा ने आगे
कहा कि किसानों की आवाज़ उठाना कानूनी अधिकार है, अपराध नहीं।
अगर प्रशासन और
व्यापारी मिलकर किसानों का शोषण करेंगे, तो जनता ज़रूर सवाल उठाएगी।
🔹 क्या पुलिस की कार्रवाई कानूनी थी?
कानून के मुताबिक
पुलिस को किसी अवैध सभा को रोकने का अधिकार होता है,
पर घर में घुसकर बल प्रयोग तभी जायज़ है जब अंदर से हमला या
प्रतिरोध हो रहा हो।
यदि ग्रामीणों के
आरोप सही साबित होते हैं, तो यह मानवाधिकारों और पुलिस मैनुअल दोनों का
उल्लंघन माना जाएगा।
कई स्थानीय
संगठनों और नेताओं ने मजिस्ट्रेट जांच की मांग की है ताकि यह तय हो सके कि
पुलिस की कार्रवाई कितनी वैध थी।
🔹 किसानों की पीड़ा अब भी वही
बोटाद और आसपास के
किसान लंबे समय से अपने उत्पाद के वाजिब
दाम, मंडी में पारदर्शिता, और सरकारी सहयोग की मांग कर रहे हैं।
उनका कहना है कि
“हम हिंसा नहीं चाहते, बस अपने श्रम का उचित मूल्य चाहते हैं।”
🔹 निष्कर्ष — जनता के हित में न्याय ज़रूरी
बोटाद की यह घटना
यह दिखाती है कि कानून और किसान के बीच की दूरी बढ़ती जा
रही है।
पुलिस का कर्तव्य
कानून-व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन जनता की
सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
किसानों की आवाज़
को दबाने से समाधान नहीं, असंतोष और बढ़ेगा।
अब ज़रूरत है कि
राज्य सरकार
- निष्पक्ष जांच आयोग गठित करे,
- और किसानों के मुद्दों पर संवाद शुरू करे।
“क्योंकि सवाल सिर्फ़ कानून का नहीं, इंसाफ़ का है — और इंसाफ़ हर उस किसान का हक़ है जिसने
अपने पसीने से धरती को सींचा है।”